Qasas ul Anbiya: Part 4
۞ बिस्मिल्लाहिररहमानिरहीम ۞
हज़रत नूह अलैहि सलाम पहले रसूल है
हज़रत आदम अलैहि सलाम के बाद यह पहले नबी हैं जिनको रिसालत अता की गई। सहीह मुस्लिम बाबे श्फ़ाअत में हज़रत अबू हुरैरह (र.अ) से एक रिवायत में यह आया है कि: “ऐ नूह अलैहि सलाम तू जमीन पर सबसे पहला रसूल बनाया गया।“
नूह अलैहि सलाम की कौम, दावत व तब्लीग़ और क़ौम की नाफ़रमानी
हजरत नूह अलैहि सलाम के नबी बनाए जाने से पहले तमाम कौम अल्लाह की तौहीद और सही मज़हबी रोशनी से पूरी तरह अनजान बन चुकी थी और हकीकी माबूद की जगह ख़ुद के गड़ें हुए बुतों ने ले ली थी। गैरुल्लाह और बुतों की पूजा उनका शिआ्र था। आख़िर अल्लाह की सुन्नत के मुताबिक़ उनके रुश्द व हिदायत के लिए भी उन ही में से एक हादी और अल्लाह के सच्चे रसूल नूह अलैहि सलाम को मबूऊस किया गया। हज़रत नृह अलैहि सलाम ने अपनी क़ौम को राहे हक़ की तरफ पुकारा और सच्चे मज़हब की दावत दी लेकिन क़ौम ने न माना और नफ़रत व हक़ारत के साथ इंकार किया।
क़ौम के अमीरों और सरदारों ने उनके झुठलाने और उन्हें ज़लील करने का कोई पहलू न छोड़ा और उनके (अमिरों और सरदारों के मानने वालों ने उन्हीं की पैरवी के सबूत में हर क़िस्म की तौहीन के तरीक़ों को हज़रत नृह अलैहि सलाम पर आज़माया। उन्होंने इस बात पर ताज्जुब ज़ाहिर किया कि जिसको न हम पर धन-दौलत में बरतरी हासिल है और न वह इंसानियत के रुतबे से बूलन्द ‘फ़रिश्ता हैकल’ है, उसको क्या हक़ है कि वह हमारा पेशवां बने और हम उसके हुक्मों को मानें?
वे क़ौम के गरीब और कमज़ोर लागों को जब हज़रत नूह अलैहि सलाम के पीछे चलने वाले और पैरवी करने वाले देखते तो घमंड भरे अन्दाज़ में ज़लील समझ कर कहते, ‘हम इनकी तरह हैं कि तेरे फ़रमान पर चलने लगें और तुझको अपना सरदार मान लें कि जिसकी पैरवी की जाए।‘ वे समझते थे कि कमजोर और पस्त लोग नूह अलैहि सलाम के अंधे मुकल्लिद हैं, न इनके पास कोई समझ है और न ये हमारी तरह जांची, परखी राय से काम लेते और न इतना शऊर है कि हक़ीकते हाल को समझ लेते और अगर वे हज़रत नूह अलैहि सलाम की बात की तरफ कभी तवज्जो भी देते, तो उनसे इसरार करते कि पहले इन कौम के पस्त और ग़रीब लोगों को अपने पास से निकाल दे, तब हम तेरी बात सुनेंगे, क्योंकि हमकों इनसे घिन आती है और हम और ये एक जगह नहीं बैठ सकते।
हज़रत नूह अलैहि सलाम इसका एक ही जबाब देते कि ‘ऐसा कभी नहीं होगा, क्योंकि ये अल्लाह के मुख्लिस बन्दे हैं अगर मैं इनके साथ .ऐसा मामला करू जिसकी तुम ख़्वाहिश रखते हो, तो अल्लाह के अजाब से मेरे लिए कोई पनागाह नहीं है। मै उसके दर्दनाक अज़ाब से डरता हूं; उसके यहां इख़्लास की कद्र है। अमीर व ग़रीब का वहां कोई सवाल नहीं है। साथ हीं इर्शाद फ़रमाते कि ‘मैं तुम्हारे पास अल्लाह की हिदायत का पैग़ाम लेकर आया हूं, न में ने गैबदानी का दावा किया है और न फ़रिश्ता होने का। अल्लाह का बरगज़ीदा पैगम्बर और रसूल हूं और दावत व इर्शाद मेरा मकसद है। उसको सरमायादाराना बुलन्दी, गैबदानी या फ़रिश्ता हैकल होने से क्या वास्ता? क़ौम के ये कमज़ोर और ग़रीब लोग, जो अल्लाह पर सच्चे दिल से ईमान लाए हैं, तुम्हारी निगाह में इसलिए हक़ीर व जलील हैं कि वे तुम्हारी तरह धन-दौलत वाले नहीं हैं और इसीलिए तुम्हारे ख्याल में ये न खैर हासिल कर सकते हैं और न सआदत, क्योंकि ये दोनों चीज़ें दौलत व हश्मत के साथ हैं, न कि गरीबी और इखलास के साथ।
सो वाजेह रहे कि अल्लाह की सआदत व खैर का क़ानून जाहिरी दौलत व हश्मत के ताबे नहीं है और न उसके यहां सआदत और हिदायत का हासिल करना और पाना सरमाए की रौनक के असर में है, बल्कि इसके ख़िलाफ़ नफ़्स का इत्मीनान, अल्लाह की रिज़ा, क़ल्ब का गिना और नियत व अमल के इख्लास पर मौक़ूफ़ है।
हज़रत नूह अलैहि सलाम ने यह भी बार-बार तंबीह की कि मुझे अपनी दावत पहुंचाने में और हिदायत के रास्ते पर लगाने में न तुम्हारे माल की ख्वाहिश है, न जाह व मंसब की, मैं उजरत का तलबगार भी नहीं हूं। इस ख़िलाफ़त का हक़ीक़ी अज्र व सवाब अल्लाह तआला के हाथ में है और वही बेहतरीन कद्र करने वाला है।
बहरहाल हज़रत नुह अलैहि सलाम ने इंतिहाई कोशिश की कि बदबख्त क़ौम समझ जाए और अल्लाह की रहमतों की पनाह में आ जाए, मगर कौम ने माना और जितना इस ओर से हक़ की तब्लीग में जद्दोजेहद हुई, उसी क़दर क़ौम की ओर से बुग्ज़ और दुश्मनी में सरगर्मी जाहिर की गई और तकलीफ पहुंचाने और चोट देने के तमाम तरीक़ों का इस्तेमाल किया गया। और उनके बड़ों ने आम लोगों से साफ़-साफ़ कह दिया कि तुम किसी तरह वुद्द, सुवाअ, यगूस और नस्र जैसे बुतों की पूजा को न छोड़ों और आख़िर में तंग आकर कहने लगे:
“ऐ नूह! तूने हमसे झगड़ा किया और बहुत झगड़ा किया; अब उसको ख़त्म कर और जो तूने हमसे (अल्लाह के अजाब) का वायदा किया है, वह ले आ।“[हूद ११:३२]
हज़रत नूह अलैहि सलाम ने यह सुनकर जवाब दिया:
‘नुह ने कहा, ज़रूर, अगर अल्लाह चाहेगा तो उस अज़ाब को भी ले आएगा और तुम उसको थका देने वाले नहीं हो।“ [हूद ११:३३]
इस तरह जब कौम की हिदायत से पहले हज़रत नूह अलैहि सलाम बिल्कुल मायूस हो गए और उसकी बातिलपरस्ती, जिद और हथधर्मी उन पर वाज़ेह हो गई और कुरआन के मुताबिक़ साढ़े नौ सौ साल तक बराबर की जा रही दावत व तब्लीग़ का उन पर कोई असर नहीं देखा गया तो बहुत ज़्यादा मलूल और परेशान-ख़ातिर हुए, तब अल्लाह तआला ने उनको तसल्ली के लिए फ़रमाया:
“और नूह पर वह्य की गई कि जो ईमान ले आए, वह ले आए, अब इनमें से कोई ईमान लाने वाला नहीं है. पस उनकी हरकतों पर ग़म न कर।“ [हूृंद ११:३६]
तब हजरत नूह अलैहि सलाम को यह मालूम हो गया कि उनके हक़ पहुंचाने में कोताही नहीं है, बल्कि ख़ुद न भानने वालों की इस्तेदाद का कसूर है और उनकी सरकशी का नतीजा। तब उन के आमाल और हरकतों का असर कुबूल करके अल्लाह तआला की बारगाह में यह दुआ फ़रमाई
“ऐ परवरदियार! तू काफ़िरों में से किसी को भी ज़मीन में बाक़ी न छोड़। अगर तू उनको यों ही छोड़ देया तो ये तेरे बन्दों को भी गुमराह करेंगे और उनकी नस्ल भी उन्हीं की तरह नाफ़रमान पैदा होगी।“ [नूह ७१:२७]
नाव की बुनियाद
अल्लाह ने हज़रत नूह अलैहि सलाम की दुआ कुबूल फ़रमाई और बदले के क़ानून और आमाल के मुताबिक़ सरकशों की हलाकत का एलान कर दिया। पहले हज़रत नूह अलैहि सलाम को हिदायत फ़रमाई कि वह एक नाव तैयार करें, ताकि ज़ाहिरी अस्बाब के एतबार से वह और पक्के मोमिन उस अजब से बचे रहें, जो अल्लाह के नाफ़रमानों पर नाज़िल होने वाला है।
हज़रत नूह अलैहि सलाम ने जब नाव बनानी शुरू की, तो कुफ़्फ़ार ने हँसी उड़ाना और मज़ाक़ बनाना शुरू कर दिया और जब कभी उधर से उनका गुज़र होता तो कछते कि ‘खूब! जब हम डूबने लगें तो तुम और तुम्हारे पीछे चलने बाले इस नाव में महफूज़ रहकर नजात पा जाएंगे। कैसा मूर्खता वाला ख्याल है?‘
हज़रत नूह अलैहि सलाम भी उनको अंजामेकार से ग़फ़लत और अल्लाह की नाफ़रसानी पर जुर्रत देखकर उन ही के ढंग से जवाब देते और अपने काम में लगे रहते, क्योंकि अल्लाह तआला ने पहले ही उनकी हक़ीक़ते हाल को बता दिया था।
“ऐ नूह! तू हमारी हिफाज़त में हमारी वह्य के मुताबिक़ नाव तैयार किए जा और अब मुझसे उनसे मुताल्लिक कुछ सवाल न हो। ये बेशक डूबने वाले हैँ।“ [हूद ११:३७]
आख़िर नूह की नाव बनकर तैयार हो गई अब अल्लाह के वायदे (अजाब) का वक़्त क़रीब आया; और हज़रत नूह अलैहि सलाम ने उनकी पहली निशानी को देखा, जिसका जिक्र उनसे किया गया था, यानी धरती के नीचे से पानी का चश्मा उबलना शुरू हुआ, तब अल्लाह की वह्य ने उनको हुक्म सुनाया कि नाव में अपने खानदान वालों को बैठने का हुक्म दो और तमाम जानदारों में से हर एक का एक जोड़ा नाव में पनाह लें और छोटी जमाज़त (लगभग चालीस लोग) भी, जो तुम पर ईमान ला चुकी है, नाव में सवार हो जाए। जब अल्लाह की वत्य की तमिल की गई तो अब आसमान को हुक्म हुआ कि पानी बरसना शुरू हो और धरती के सोतों को हुक्म दिया गया कि वे पूरी तरह उबल पड़ें। अल्लाह के हुक्म से जब यह सब कुछ होता रहा, तो नाव भी उसकी हिफ़ाज़त में पानी पर एक मुद्दत तक तैरती रही, यहां तक कि तमाम इंकार करने वाले और दुश्मन डूब गए और अल्लाह तआला के क़ानून ‘जज़ा व आमाल’ के मुताबिक़ अपने किए को पहुंच गए।
जूदी पहाड़ (अज़ाब का ख़त्म होना)
ग़रज जब अल्लाह के हुक्म से अज़ाब ख़त्म हुआ तो नूह अलैहि सलाम की नाव जूदी पर ठहर गई।
❝और हुक्म पूराहुआ और नाव ज़ूदी पर जा ठहरी और एलान कर दिया गया कि जुल्म करने वाली कौम के लिए हलाकत है।” [हूद ११:४४]
पानी धीरे-धीरे सूखना शुरू हो गया और नाव में पनाह लेने वालों ने दूसरी बार अम्न व सलामती के साथ अल्लाह की जमीन पर क़दम रखा। इसी वजह से हज़रत नूह अलैहि सलाम का लक़ब ‘अबुल बशर सानी‘ या ‘आदमे सानी‘ (यानी इंसानों का दूसरा बाप) और शायद इसी एतबार से हदीस में उनको ‘अव्वलुरुसुल” कहा गया। (जिस इंसान पर अल्लाह की वह्य नाजिल होती है, वह “नबी” और जिसको नई शरीअत भी अता की गई हो, वह ‘रसूल‘ है। रसूल नबी भी होता है, मगर नबी का रसूल होना ज़रूरी नहीं) जहां तक जूदी पहाड़ की जगह का ताल्लुक़ है, तो क़ुरआन ने सिर्फ़ उस जगह का तज़्किरा किया है, जहां नाव जाकर ठहरी थी अलबत्ता तौरात की शरह लिखने वालों का ख़्याल है कि जूदी पहाड़ के उस सिलसिले का नाम है जो अररात और जॉर्जिया के पहाड़ी सिलसिले को आपस में मिलाता है।
नूह अलैहि सलाम का बेटा
तारीख़ के माहिरों ने हज़रत नूह अलैहि सलाम के इस बेटे का नाम कनआन बताया है, यह तौरात की रिवायत के मुताबिक़ है। कुरआन उसका नाम बताने से ख़ामोंश है, जो नफ़्से वाक्रिया के लिए गैर ज़रूरी था अलबत्ता हज़रत नूह अलैहि सलाम का उस बेटे से ख़िताब और उसके जवाब का ज़िक्र किया गया है:
❝कहा; मैं बहुत जल्द किसी पहाड की पनाह लेता हूं कि वह मुझको डूबने से बचा लेगा।❞ [हूद ११:४५]
बहरहाल कनआन हज़रत नूह का बेटा था, मगर उस पर हज़रत नूह अलैहि सलाम की हिदायत व रुश्द की जगह अपनी काफ़्रिर वालिदा की तर्बियत की गोद ने और ख़ानदान और कौम के माहौल ने बुरा असर डाला और वह नबी का बेटा होने के बावजूंद काफ़िर ही रहा। और तूफान में गर्क हो गया।
नूह अलैहि सलाम का तूफ़ान आम था या ख़ास
क्या नूह अलैहि सलाम का तूफ़ान पूरी दुनिया में आया था या किसी ख़ास ख़ित्ते पर, इसके बारे में पुराने और नए उलेमा में हमेशा, से दो राएं रही हैं। यही सूरत यहूदी और ईसाई उलेमा, फ़लकियात के इल्म के और तबक़ातुल-अर्ज़ के माहिरों की है। एक तबक़े का ख्याल है कि यह सिर्फ़ उसी ख़ित्ते में महदूद था, जहां हज़रत नूह अलैहि सलाम की कौम आबाद थी और यह हलका फैलाव के एतबार से एक लाख चालीस हज़ार मुरब्बा किलो मीटर होता है, लेकिन सही मस्लक यही है कि तुफ़ान ख़ास था, आम न था, अलबत्ता कुरआन मजीद ने अल्लाह की सुन्नत के मुताबिक़ सिर्फ उन्हीं तफ़्सीलों पर तवज्जोह की है, जो नसीहत के लिए और सबक हासिल करने के लिए ज़रूरी थीं। वह तो सिर्फ़ यह बताना चाहता है कि “तारीख़ का यह वाकिया सोचने-समझने वालों को भुलाना न चाहिए कि हज़ारों साल पहले एक कौम ने अल्लाह की नाफ़रमानी पर इसरार किया और उसके भेजे हुए हादी हज़रत नूह अलैहि सलाम के सबक व हिदायत्त के पैग़ाम को झुठलाया, ठुकराया और मानने से इन्कार कर दिया, तो अल्लाह ने अपनी कुदरत का मुज़हारा किया और ऐसे सरकशों को हवा-बारिश के तूफ़ान में गर्क कर दिया और इसी हालत में हज़रंत नूह अलैहि सलाम और थोड़े से लोगों की ईमानदार जमाअत को महफ़ूज़ रखकर कर नजात दी।”
हज़रत नूह अलैहि सलाम की उम्र
कुरआन मजीद ने साफ़ कहा है कि हज़रत नूह अलैहि सलाम ने अपनी कौम में साढ़े नौ सौ साल तब्लीग व दावत का फ़र्ज़ अंजाम दिया।
❝और बिला शुबहा हमने नूह को उसकी कौम की तरफ़ रसूल बनाकर भेजा, पास वह रहा उनमें पचास कम एक हज़ार साल।❞ [अकबूत २७:१४]
यह उम्र मौजूदा तबई उम्र के एतबार से अक़्ल से परे मालूम होती है, लेकिन मुहाल और नामुम्किन नहीं है, इसलिए कि कायनात के शुरू के दिनों
में ग़मों, फ़िक्रों और मरज़ों की यह बहुतात नहीं थी, साथ ही पुरानी तारीख़ भी मानती है कि कुछ हज़ार साल पहंले की तबई उम्र का तनासुब मौजूदा तनासुब से बहुत ज़्यादा था। हज़रत नूह अलैहि सलाम की तबई उम्र का मामला भी इसी क़िस्म के इस्तित्ना (अपवाद) में से समझना चाहिए जो अंबिया अलैहि सलाम की तारीख़ में अल्लाह की आयत और उसकी निशानी की फेहरिस्त में गिनी जाती है और जिनकी हिक्मत का मामला ख़ुद अल्लाह तआला के सुपुर्द है।
कुरआन मजीद में हजरत नूह अलैहि सलाम का जिक्र अठाईस सूरतों में तेंतालीस जगह आया है।
To be continued …
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